Dalit Jivan Ki Kahaniyan
Item Weight | 200 Grams |
ISBN | 978-9352664092 |
Author | Giriraj Sharan |
Language | Hindi |
Publisher | Prabhat Prakashan Pvt Ltd |
Book Type | Hardbound |
Edition | 1st |

Dalit Jivan Ki Kahaniyan
विकास के प्रारंभिक चरण में जब अधिक मानव- श्रम की आवश्यकता अनुभव हुई तो आदमी ने आदमी का शोषण करना शुरू कर दिया, और इसके साथ ही आदिम समाज के कृषियुग में दासप्रथा का जन्म हुआ । शोषित और दलित वर्ग की जो समस्याएँ स्वतंत्रता से पूर्व सामाजिक स्तर पर थीं, उसके बाद उन्होंने आर्थिक-राजनीतिक भयावह शक्ल अख्तियार कर ली । इन विषम समस्याओं से अवगत होने और उनका समाधान खोजने के लिए हमने सुधारवादी, प्रगतिशील और क्रांतिकारी होने का ढोंग रचा । किंतु अपनी सुख-सुविधा और उच्च वर्गीय पहचान को कायम रखने के लिए निर्बलों और दलितों का शोषण करने से हम बाज न आ सके, न हमने अपनी इस घिनौनी हवस से कभी गुरेज ही किया । हमारी कुलीनता और रईसाना आदतों का शिकार आजादी से पहले भी दलित वर्ग था और आजादी के प्रायः चालीस वर्ष बाद भी हमारा शिकार यही वर्ग है-नितात निरीह और बेचारा ।इस विषम स्थिति से निबटने का अब एकमात्र विकल्प रह गया है वर्ग-संघर्ष । एक दिन शोषक वर्ग इस विकल्प के सामने शोषितों और दलितों के विरुद्ध छेड़ी गई मुहिम पर मुँह की खाकर हथियार डाल देगा ।प्रस्तुत संकलन की कहानियों भारतीय मनीषा को झकझोरती हुई उसकी मानसिक ऊहापोह का ऐसा चित्र प्रस्तुत करती हैं जिसमें शोषक वर्ग बेनकाब होकर रह जाता है और दलित-शोषित वर्ग हमसे सहानुभूति की माँग कर बैठता है ।
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