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मेरा अनुभव है कि लोक भाषाओं में यथार्थ-चित्रण की जो क्षमता है, वह हिंदी या खड़ी बोली में कभी नहीं हो सकती। संतोष की बात यह है कि हिंदी की सारी बोलियाँ उसी की अंग हैं और बोलियों का साहित्य हिंदी के साहित्य को ही समृद्ध करता है। संतोष की बात यह भी है कि जिस भोजपुरी का क्षेत्र हिंदी की बोलियों में सबसे बड़ा है, उसमें हिंदी के प्रति कोई द्वेष-भाव नहीं है।डॉ. सुनील कुमार पाठक ने अपना यह गं्रथ हिंदी में प्रस्तुत किया है। शायद यह सोचकर कि यह हिंदी पाठकों को भी भोजपुरी कविता में अभिव्यक्त राष्ट्रीयता से परिचित करा सकेगा। यह शुभ लक्षण है कि राष्ट्रवाद का अर्थ उन्होंने अंध राष्ट्रवाद नहीं लिया है और उसे अंतर्राष्ट्रीयता के अविरोधी के रूप में देखा है। निश्चय ही आज विकासशील देशों की राष्ट्रीयता पर खतरा है। यह गं्रथ हममें राष्ट्रीयता का भाव ही नहीं जगाता, बल्कि उक्त खतरे से हमें आगाह भी करता है। किसी ग्रंथ से और क्या चाहिए?—नंदकिशोर नवल लोक की वेदना लोक की भाषा में ही ठीक-ठीक व्यक्त होती है। उसी में सुनाई पड़ती है जीवन की प्रकृत लय और उसकी भीतरी धड़कन। मनुष्य की सभ्यता और संस्कृति का, उसके संपूर्ण रूप का अंतरंग साक्षात्कार लोक भाषाओं में ही होता है। भोजपुरी हमारे देश की संभवतः सबसे बड़े भ��-भाग और उस पर रहने वाली सबसे अधिक जनसंख्या के व्यवहार और अभिव्यक्ति की भाषा है। इस भाषा को राजनीति, समाजसेवा और साहित्य के क्षेत्र में अनेक महान विभूतियों को जन्म देने का श्रेय प्राप्त है। यदि कोई इस भाषा- क्षेत्र को छोड़कर भारत का इतिहास लिखना चाहे, तो संभव नहीं होगा।रचनाकार किसी एक देश और राष्ट्र का नहीं बल्कि मानव मात्र की वेदना का गायक होता है । दिनकरजी ने ठीक ही लिखा है—''लेखक, कवि और दार्शनिक राष्ट्रीयता की सीमा को देखते हैं, किंतु राजनीति उसी को संपूर्ण सत्य समझती है।'' भोजपुरी कविता में अपने परिवेश का तो यथार्थ चित्रण है ही, उसमें संपूर्ण मानव जाति की मंगल कामना व्यक्त हुई है।प्रस्तुत पुस्तक 'छवि और छाप— राष्ट्रीयता के आलोक में भोजपुरी कविता का पाठ' में श्री सुनील कुमार पाठक ने भोजपुरी कविता के अभिव्यक्ति-कौशल का विश्लेषण करते हुए उसकी राष्ट्रीय चेतना को इसी व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखा है। आशा है, पाठक इस पुस्तक का स्वागत करेंगे।—विश्वनाथ प्रसाद तिवारी_____________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________अनुक्रमभूमिका — Pgs. ५१. राष्ट्र, राष्ट्रीयता और राष्ट्रवाद-स्वरूप एवं प्रकृति — Pgs. १५-५२परिभाषा, इतिहास, राष्ट्रीयता का भावोदय, राष्ट्रीयता और देशभक्ति, राष्ट्रीयता का राष्ट्रवाद में संचरण, राष्ट्रवाद का आधुनिक स्वरूप, नेशन एवं नेशनलिज्म तथा राष्ट्र एवं राष्ट्रवाद२. भोजपुरी कविता में राष्ट्रीयता का स्वरूप एवं संदर्भ — Pgs. ५३-८६भोजपुरी कविता और उसमें राष्ट्रीयता का अरुणोदय, राष्ट्रीयता की सजीव अभिव्यक्ति, राष्ट्रीयता का विस्तार, राष्ट्रीय प्रंग एवं उनकी संबद्धता ३. भोजपुरी कविता में अभिव्यक्ति-वैभव — Pgs. ८७-११७राष्ट्रीय कविता में वस्तु-विन्यास एवं कल्पना सृष्टि, भाषा-शैली का बाँकपन, भंगिमा एवं समृद्धि, रसों में राष्ट्र-रस अथच राष्ट्रीय रस, अलंकार-अभिव्यक्ति एवं छंद-वैभव, बिंबात्मक एवं प्रतीकात्मक प्रयोग, मौलिक भोजपुरी अभिव्यक्ति-कौशल४. भोजपुरी एवं हिंदी राष्ट्रीय कविताओं कासमीकरण — Pgs. ११८-१६१भोजपुरी एवं हिंदी के प्रमुख राष्ट्रधर्मी कवि एवं उनकी कविताएँ, कवियों की स्वाभाविक राष्ट्रीय चेतना का तुलनात्मक अध्ययन, कवियों के परस्पर आदान-प्रदान, समीकृत राष्ट्रीय चेतना में भोजपुरी का स्थान एवं महत्त्व५. भोजपुरी लोकगीतों में राष्ट्रीय चेतना — Pgs. १६२-१९०भोजपुरी लोक उत्साह एवं आवेश, मिट्टी के प्रति प्रेम, ग्राम से राष्ट्र और व्यक्ति से विश्व, भोजपुरी लोकगीतों में राष्ट्रीयता का उद्भव और विकास, भोजपुरी लोकगीतों में राष्ट्रीयता की अभिव्यक्ति६. स्वतंत्रता-आंदोलन युगीन प्रमुख भारतीय भाषाओं एवं आंचलिक/लोक भाषाओं की राष्ट्रीय कविताओं से तत्कालीन भोजपुरी कविता का तुलनात्मक अध्ययन — Pgs. १९१-२२२हिंदी इतर प्रमुख भारतीय भाषाओं एवं आंचलिक/लोक भाषाओं की स्वतंत्रता-आंदोलन युगीन राष्ट्रीय कविताओं तथा तत्कालीन भोजपुरी राष्ट्रीय कविताओं के भावात्मक एवं कलात्मक साम्य-वैषम्य, हिंदी एवं हिंदी इतर प्रदेशों में प्रचलित लोकगीतों एवं भोजपुरी लोकगीतों की राष्ट्रीय चेतना की तुलनात्मक विवेचना७. भोजपुरी कविता की राष्ट्रीय चेतना पर भोजपुरी समाज एवं संस्कृति का प्रभाव — Pgs. २२३-२२९साधारण भोजपुरी समाज, आत्मीयता और औदार्य, मानवीय संवेदना, समर्पित और न्योछावर होनेवाली संस्कृति, अभियोज्य भोजपुरी स्वभाव एवं देशाटन, घर, ग्राम, मातृभूमि किंवा राष्ट्रभूमि, भोजपुरी स���ा��� एवं संस्कृति द्वारा राष्ट्रीय चेतना को प्रकाश८. भोजपुरी की आधुनिक कविताओं की राष्ट्रीयता में सामाजिकप्रतिबद्धता के स्वर — Pgs. २३०-२४६इक्कीसवीं सदी में राष्ट्रीयता की विस्तृत वैचारिक अवधारणा, आधुनिक भोजपुरी कविताओं में राष्ट्रीयता का व्यापक स्वरूप और बहुआयामी विन्यास, सामाजिक प्रतिबद्धता के स्वर, 'भूंडलीकरण' एवं 'उपभोक्तावाद' के युग में भोजपुरी कविताओह्यं में मानवीय संवेदनाओं और राष्ट्रीय हितों का व्यापक चिंतन, आधुनिक राष्ट्रीयता और अंतर्राष्ट्रीयता के वैचारिक धरातल पर भोजपुरी कविता के तेवर९. उपसंहार — Pgs. २४७परिशिष्ट : सहायक ग्रंथों एवं पत्र-पत्रिकाओं की सूची — Pgs. २५२

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