Bhrashtachaar Ka Kadva Sach
Author | Shanta Kumar |
Language | Hindi |
Publisher | Prabhat Prakashan Pvt Ltd |
ISBN | 978-9350480595 |
Book Type | Hardbound |
Item Weight | 0.269 kg |
Edition | 1st |
Bhrashtachaar Ka Kadva Sach
देश में बहुत सी स्वैच्छिक संस्थाएँ भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठा रही हैं, लेकिन उनकी आवाज नक्कारखाने में तूती की तरह है। भ्रष्टाचार मिटाने के लिए एक प्रबल जनमत खड़ा करने की आवश्यकता है। किसी भी स्तर पर रत्ती भर भी भ्रष्टाचार सहन न करने की एक कठोर प्रवृत्ति की आवश्यकता है, तभी हमारे समाज से भ्रष्टाचार समाप्त हो सकता है।आज की सारी व्यवस्था राजनैतिक है। शिखर पर बैठे राजनेताओं के जीवन का अवमूल्यन हुआ है। धीरे-धीरे सबकुछ व्यवसाय और धंधा बनने लग पड़ा। दुर्भाग्य तो यह है कि धर्म भी धंधा बन रहा है। राजनीति का व्यवसायीकरण ही नहीं अपितु अपराधीकरण हो रहा है। राजनीति प्रधान व्यवस्था में अवमूल्यन और भ्रष्टाचार का यह प्रदूषण ऊपर से नीचे तक फैलता जा रहा है। सेवा और कल्याण की सभी योजनाएँ भ्रष्टाचार में ध्वस्त होती जा रही हैं।एक विचारक ने कहा है कि कोई भी देश बुरे लोगों की बुराई के कारण नष्ट नहीं होता, अपितु अच्छे लोगों की तटस्थता के कारण नष्ट होता है। आज भी भारत में बु���े लोग कम संख्या में हैं, पर वे सक्रिय हैं, शैतान हैं और संगठित हैं। अच्छे लोग संख्या में अधिक हैं, पर वे बिलकुल निष्क्रिय हैं, असंगठित हैं और चुपचाप तमाशा देखने वाले हैं। बहुत कम संख्या में ऐसे लोग हैं, जो बुराई के सामने सीना तानकर उसे समाप्त करने में कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं।देश इस गलती को फिर न दुहराए। गरीबी के कलंक को मिटाने के लिए सरकार, समाज, मंदिर सब जुट जाएँ। यही भगवान् की सच्ची पूजा है। नहीं तो मंदिरों की घंटियाँ बजती रहेंगी, आरती भी होती रहेगी, पर भ्रष्टाचार से देश और भी खोखला हो जाएगा तथा गरीबी से निकली आतंक व नक्सलवाद की लपटें देश को झुलसाती रहेंगी।______________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________अनुक्रमणिकामेरी बात —Pgs. 5भ्रष्टाचार का कड़वा सच1. 'वह' अकेला नहीं था —Pgs. 132. हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए —Pgs. 183. गरीबी व आतंक का जनक भ्रष्टाचार —Pgs. 214. भ्रष्टाचार बढ़ाती सरकार —Pgs. 245. अन्ना हजारे : भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष-यात्रा —Pgs. 276. राजनीति का अध्यात्मीकरण : आज की आवश्यकता —Pgs. 317. लोकपाल कानून भ्रष्टाचार रोक सकता है —Pgs. 348. सब भ्रष्टाचारी नहीं, कुछ तो बचे हैं —Pgs. 379. आजादी की दूसरी लड़ाई की यह चिनगारी बुझेगी नहीं —Pgs. 4110. जनता अब भ्रष्टाचार नहीं सहेगी —Pgs. 45किस्सा काले धन का 11. काला धन कभी वापिस नहीं आएगा —Pgs. 5112. देश का धन देश में लाएँ —Pgs. 5613. समस्त विश्व चिंतित है कालेधन के जाल से —Pgs. 6014. कितनी है यह लूट? —Pgs. 6415. देश का धन कैसे वापिस लाएँ —Pgs. 68खाद्यान्न वितरण का गड़बड़झाला 16. खाद्य मंत्रालय अब शर्मसार,तब गौरवान्वित —Pgs. 7517. असंवेदनशील सरकार गरीबों को अनाज नहीं दे सकती —Pgs. 7918. क्या करेगी खाद्य सुरक्षा, अगर दुरुस्त नहीं है वितरण व्यवस्था —Pgs. 81गरीबी एक अभिशाप 19. टैक्स चोरी रोकने से सब्सिडी का घाटा पूरा हो सकता है —Pgs. 8720. गरीबों की सही गणना भी नहीं कर पा रही सरकार —Pgs. 9021. गरीबी हटाइए, नक्सलवाद मिट जाएगा —Pgs. 9422. नक्सलवाद विरोधी अभियान अधूरा है —Pgs. 9723. तटस्थ भी अपराधी है —Pgs. 10224. गरीब की सेवा ही भगवान् की सच्ची पूजा है —Pgs. 10525. और अब राहुल गांधी दूर करेंगे गरीबी! —Pgs. 11026. गरीब देश के करोड़पति नेता —Pgs. 11427. कृषि को प्राथमिकता चीन के विकास का रहस्य —Pgs. 117कुछ और ज्वलंत मुद्दे 28. नन्ही कलियों को मुरझाने से बचाओ —Pgs. 12329. गांधी-अंत्योदय और यह विषमता —Pgs. 12730. दर्द की काली रात लंबी होती है —Pgs. 13031. जरा तू बोल तो, सारी धरा हम फूँक देंगे —Pgs. 13332. खुदरा बाजार में विदेशी निवेश तर्कसंगत नहीं —Pgs. 13833. 6 दिसंबर आक्रोश का परिणाम —Pgs. 14134. कल्पनाशील नेता : भैरों सिंह शेखावत —Pgs. 14635. जनगणना में जाति एक भयंकर भूल —Pgs. 15036. 26 जून : इतिहास का काला दिन —Pgs. 15337. एक आदर्श नेता : गंगा सिंह जम्वाल —Pgs. 15838. सुरक्षा व सम्मान दाँव पर —Pgs. 16139. बहुत याद आते हैं भगतसिंह —Pgs. 16540. संवैधानिक संस्थाओं का अवमूल्यन —Pgs. 16741. राष्ट्रसंघ : विश्व शांति की दिशा में महान् उपलब्धि —Pgs. 17142. महँगाई की मार और मुद्रास्फीति —Pgs. 17543. सांसद निधि का एक और सच —Pgs. 17944. शपथ लेना तो सरल है, पर निभाना बहुत ही कठिन है —Pgs. 182और अब न्यायपालिका भी45. समाज को विकृति नहीं, संस्कृति चाहिए —Pgs. 18746. बचत की खोखली बातें —Pgs. 19047. न्यायपालिका असहाय क्यों? —Pgs. 19348. न्याय में विलंब भी एक अन्याय है —Pgs. 19649. न्यायपालिका की गरिमा के लिए दिनाकरन इस्तीफा दें —Pgs. 19950. एक साक्षात्कार : जीवन के पचहत्तर वर्ष पूरे होने पर —Pgs. 203
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