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अस्तु' एक ऐसा काव्य संग्रह है ,जिसकी अधिकतर कवितायें हमारे देश के एक सैनिक ने अपनी ड्यूटी के दौरान विश्राम के समय लिखी हैं, इन कविताओं में विषम परिस्थितियों का चित्रण, प्रेम, जीवन की विडंबनाएँ, प्राकृतिक सौन्दर्य का मानवीकरण मिलता है। कैप्टेन सुशील कुमार सहाय अब 82 वर्ष के हैं और आज जीवन के इस पड़ाव पर उनका ये प्रथम काव्य संग्रह निकला है जो हिंदी साहित्य जगत के लिए एक प्रतिमान स्थापित करेगा। कुल 16 कवितायें और 2 क्षणिकाएं हैं। कुछ कवि के जीवन से जुड़े चित्र भी हैं
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Nivedita Srivastava
'अस्तु 'एक सैनिक द्वारा समाज को दिया साहित्यिक रत्न

'अस्तु' पर मेरी समीक्षा 🙏👇

अस्तु' कैप्टन सुशील कुमार सहाय द्वारा लिखित पुस्तक पढ़ी तो मैं सबसे पहले उनके पर्यवेक्षकण शक्ति से बहुत प्रभावित हुई। देश की सुरक्षा के लिए तैनात एक सैनिक का समाज और धरती के अनेक पहलुओं के प्रति इतना अच्छा पर्यवेक्षण मन में उठते इतने महत्वपूर्ण सवाल तथा निष्कर्ष सब मुझे प्रभावित कर गए। हर रचना उनके मन में उठते उथल-पुथल को शब्द देती है तथा कोई ना कोई समाधान उसी रचना में प्रस्तुत करती है, चाहे वह 'हंसा रे' हो, जहाॅं वह प्रदूषण पर जोर देते हैं। चाहे, 'त्रासदी' में प्रभु से उनका प्रश्न कि पृथ्वी का यह विनाशक रूप जो उन्होंने सृष्टि रसचते वक्त नहीं सोचा होगा, उसका विवरण तथा उसी का समाधान जो वह प्रभु को सुझाव के रूप में देते हैं। हर रचना मानव जीवन के किसी न किसी पहलू को छूती है। कविताओं को इतने सुंदर शब्दों से पिरोया गया है कि, हर भाव उभर कर आता है जो पाठक के के मन में घर कर जाता है। सभी रचनाएं उच्च कोटि की हैं, अद्भुत, अनुपम अनुभूति देते हुए।
तो मैं यही कहूंगी कि 'अस्तु' एक सैनिक द्वारा समाज को दिया एक "साहित्यिक रत्न' है, जिसे मैं अन्य पाठकों को भी पढ़ने की अनुशंसा करूंगी।

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