Look Inside
Apne Samne
Apne Samne

Apne Samne

Regular price ₹ 367
Sale price ₹ 367 Regular price ₹ 395
Unit price
Save 7%
7% off
Tax included.
Size guide

Pay On Delivery Available

Rekhta Certified

7 Day Easy Return Policy

Apne Samne

Apne Samne

Cash-On-Delivery

Cash On Delivery available

Plus (F-Assured)

7-Days-Replacement

7 Day Replacement

Product description
Shipping & Return
Offers & Coupons
Read Sample
Product description
कुंवर नारायण कायह कविता-संग्रह एक लम्बे समय कें बाद आ रहा है । ' आत्मजयी' के बाद की ये कविताएँ रचनाकाल की दृष्टि से किसी एक ही समय की नहीं हैं; इसलिए एक तर चर की भी नहीं हैं । विविधता वैसे भी उनकी विशिष्टता है क्योंकि जीवन को अनुभूति और चिन्तन के विभिन्न धरातलों पर ग्रहण करनेवाले कवि कुंवर नारायण अपनी कविताओं में सीमाएँ' नहीं बनाते; उनकी ज्यादातर कविताएँ किसी एक ही तरह की भाषा या विषय में विसर्जित-सी हो गयी नहीं लगतीं -दोनो को विस्तृत करती लगती हैं । अनेक कविताएँ मानो समाप्त नहीं होती, एक खास तरह हमारी बेचैनियों का हिस्सा बन जाती हैं । इस तरह से देखें तो वे अपने को सिद्ध करनेवाले कवि हमें नहीं नजर आते । वे बराबर अपनी कविताओं में मुहावरों से बचते हैं और अपने ढंग से उनसे लड़ते भी हैं । उनकी कविता की भाषा में धोखे नहीं हैं । अधिकांश कविताओं का पैनापन जिन्दगी के कई हिस्सों को बिल्कुल नये ढंग से छूता है । वे मानते हैं कि दैनिक यथार्थ के साथ कविता का रिश्ता नजूदीक का भी हो सकता है और दूर का भी और दोनों ही तरह वह जीवन के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है-सवाल है कविता कितने सच्चे और उदार अर्थों में हमें आदमी बनाने की ताकत रखती है । कविता उनके लिए जीवन का प्रतिबिम्ब मात्र नहीं, जीवन का सबसे आत्मीय प्रसंग है-कविता, जो अपने चारों तरफ भी देखती है और अपने को सामने रखकर भी । उनकी कविताओं में हमें बहुत सतर्क किस्म की भाषा का इस्तेमाल मिलता है; वह कभी बहुत गहराई से किसी ऐतिहासिक या दाशनिक अनुभव की तहों में चली जाती है और कभी इतनी सरल दिखती है कि वह हमें अपने बहुत क़रीब नजर आती है । बहुआयामी स्तरों पर भाषा से यह लड़ाई और प्यार कुंवर नारायण को चुनौती देता है, खासतौर पर एक ऐसे वक्त में जब कविता का एक बड़ा हिस्सा एक ही तरह की भाषा में अपने को अभिव्यक्त किये चला जा रहा है । हिन्दी के अग्रणी आधुनिक कवि कुंवर नारायण की कविता को दुनिया में जाने का मतलब जिन्दगी को गहराई और विस्तार से देखने और जानने का अच्छा मौका पा लेना है ।

कुँवर नारायण (1927-2017) कुँवर नारायण आधुनिक समय के श्रेष्ठतम साहित्यकारों में हैं। वे कविता, कहानी, निबन्ध, आलोचना, विचार, अनुवाद आदि विधाओं में लिखते रहे हैं। उनकी कृतियाँ व्यापक रूप से राष्ट्र्रीय और अन्तरराष्ट्र्रीय स्तर पर अनूदित और सम्मानित हुई हैं। उनके जीवन और लेखन का अद्वैत उन्हें समकालीन परिदृश्य का एक अनूठा रचनाकार बनाता है।

 

Title: Apne Samne| अपने सामने

Author: Kunwar Narain | कुँवर नारायण

Shipping & Return
  • Sabr– Your order is usually dispatched within 24 hours of placing the order.
  • Raftaar– We offer express delivery, typically arriving in 2-5 days. Please keep your phone reachable.
  • Sukoon– Easy returns and replacements within 7 days.
  • Dastoor– COD and shipping charges may apply to certain items.

Offers & Coupons

Use code FIRSTORDER to get 10% off your first order.


Use code REKHTA10 to get a discount of 10% on your next Order.


You can also Earn up to 20% Cashback with POP Coins and redeem it in your future orders.

Read Sample

क्रम

एक

1. अन्तिम ऊँचाई .................................. 11  
2. समुद्र की मछली ............................... 13  
3. आपद्धर्म ....................................... 14  
4. विकल्प-1 ...................................... 16  
5. विकल्प-2 ...................................... 17  
6. जब आदमी आदमी नहीं रह पाता .................... 18  
7. तब भी कुछ नहीं हुआ ........................... 19  
8. शक ............................................ 20  
9. बँधा शिकार ................................... 21  
10. नयी कक्षा में ................................. 22  
11. अनिश्चय ....................................... 23  
12. एक अजीब दिन ................................. 25  
13. अब वो नहीं रहे ................................ 26  
14. एक अदद कविता ................................. 27  
15. इन्तिज़ाम ...................................... 28  
16. विश्वासघात ................................... 30  
17. ऊँचा उठा सिर ................................. 32  
18. पूरे की तलाश में .............................. 33  
19. आदमी अध्यवसायी था ............................ 34  
20. शनाख़्त के सिलसिले ........................... 35 

दो

21.अपने बजाय ........................................... 37
22.मतलब का रिश्ता .................................... 39
23.अवकाशप्राप्त समय में .......................... 41
24.तुम मेरे हर तरफ़ .................................... 42
25.सतहें ................................................... 43
26.बाक़ी कविता .......................................... 44

चलती हुई सड़कें .................................... 47
लगभग दस बजे रोज़ ............................... 49
विभक्त व्यक्तित्व ................................. 51
रेखा के दोनों ओर ................................. 52
लखनऊ ................................................. 54
चिकित्सा ............................................... 56
चील ...................................................... 58
हिसाब और किताब .................................. 59
चीजें और आदमी ..................................... 61
अधूरे समझौते ...................................... 62
अनुचित लगता है अब .............................. 63
ज़रूरतों के नाम पर ................................. 64
लाउडस्पीकर ......................................... 65
ताला ..................................................... 66
आसन्न संकट में ................................... 67
खेल ....................................................... 69
गाय ....................................................... 71
एक मौसम .............................................. 72
एक हरा जंगल ........................................ 73
अकेली ख़ुशी ......................................... 74
दूर तक ............................................... 75
डूबते देखा समय को ............................ 76
पहले भी आया हूँ ................................. 77
श्रावस्ती ............................................... 78
मस्तकविहीन बुद्ध प्रतिमा ...................... 79
कोणार्क .............................................. 80
रास्ते (फतेहपुर सीकरी) ........................ 81
अनात्मा देह (फतेहपुर सीकरी) .............. 82
सोने का नगर ........................................ 83

तीन 

दिल्ली की तरफ़ ..................................... 87
क़ुतुबमीनार ......................................... 88
इब्नबतूता ............................................ 89
आज भी ............................................... 91
फ़ौजी तैयारी ......................................... 92
बर्बरों का आगमन ................................. 93
वियतनाम ............................................ 94
काले लोग ............................................. 95
आज का ज़माना .................................... 97
लापता का हुलिया ................................ 98
भागते हुए ............................................ 99
काफ़ी बाद ........................................... 101
सन्नाटा या शोर .................................... 102
वह कभी नहीं सोया ............................... 104
उस टीले तक ......................................... 106
पूरा जंगल ............................................ 108

 

अन्तिम ऊँचाई

कितना स्पष्ट होता आगे बढ़ते जाने का मतलब

अगर दसों दिशाएँ हमारे सामने होतीं,

                                         हमारे चारों ओर नहीं

कितना आसान होता चलते चले जाना

यदि केवल हम चलते होते

                                         बाक़ी सब रुका होता

 

मैंने अक्सर इस ऊलजलूल दुनिया को

दस सिरों से सोचने और बीस हाथों से पाने की कोशिश में

अपने लिए बेहद मुश्किल बना लिया है।

 

 

शुरू-शुरू में सब यही चाहते हैं

कि सब कुछ शुरू से शुरू हो,

लेकिन अन्त तक पहुँचते-पहुँचते हिम्मत हार जाते हैं।

हमें कोई दिलचस्पी नहीं रहती

कि वह सब कैसे समाप्त होता है

जो इतनी धूमधाम से शुरू हुआ था

                                                             हमारे चाहने पर।

 

 

दुर्गम वनों और ऊँचे पर्वतों को जीतते हुए

जब तुम अन्तिम ऊँचाई को भी जीत लोगे-

जब तुम्हें लगेगा कि कोई अन्तर नहीं बचा अब

 

पूरे की तलाश में

तुम जो कभी अपने बायें हाथ की तरह बेवकूफ़ हो
और कभी अपने दाहिने हाथ की तरह चालाक 
क्यों एक-दूसरे को एक-दूसरे के ख़िलाफ़
हाथों या हथियारों की तरह उठाकर
फिर वहीं के वहीं जा पहुँचते हो
                          जहाँ तुम पहले ही से थे?
एक से दूसरी करवट बदलते हुए
                          -मेरे सोये हाथ 
मैंने अक्सर अपने पीछे सुनी है
किसी दरवाज़े के बन्द होने की आवाज़  और फिर
बहुत-सी आवाज़ों के एक साथ बन्द हो जाने की
                       ख़ामोशी
ख़ामोशी जिसकी अपनी ज़बान होती है
                  और भयानकता
जैसे एक मटमैली जिल्दोंवाली किताब
अचानक एक रात कहीं से खुल जाय
और बीच में दबी मिले एक कटी हुई जीभ
और वह निकल पड़े
अपने बाक़ी हिस्सों की तलाश में।


 

Customer Reviews

Be the first to write a review
0%
(0)
0%
(0)
0%
(0)
0%
(0)
0%
(0)

Related Products

Recently Viewed Products