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Antim sangrila ki dharti mein : bhutan pravas ke anubhav
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About Book

भूटान देखने-समझने की लालसा हर किसी यात्री के मन में विद्यमान होगी। इसका मूल कारण सम्भवतया भूटान का वह विशिष्ट सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश है जो भिन्न-भिन्न कालखण्डों के प्रभाव व स्पर्श से गुज़रते हुए भी अपने मूल स्वभाव के साथ अपनी एक भिन्न पहचान बनाये रखने में सफल रहा है। बौद्ध धर्म की यह धरती द्रुकयुल पूरे बौद्ध संसार की अमूल्य धरोहर है। इसे अन्तिम संग्रीला कहने के पीछे यही भाव निहित है। भूटान में कई शताब्दियाँ एकसाथ विद्यमान एवं साँस लेती हुई देखी जा सकती हैं। भूटान शेष विश्व के सम्पर्क में आने से लम्बे समय तक बचा रहा। न केवल इसका प्राकृतिक वैभव, विविधता व मानवीयता बची रही अपितु इसकी धरती एवं मानव साथ-साथ पलते रहे, पल्लवित होते रहे। इसका परिणाम है कि भूटान आज अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर सकल राष्ट्रीय ख़ुशी की पहचान वाले देश के रूप में जाना जाता है। बीसवीं शताब्दी के अन्तिम वर्षों का भूटान इस पुस्तक की आधार विषय-वस्तु है। आशा है कि यह पुस्तक भूटान को समझने की जिज्ञासा के अनेक प्रश्न हल कर सकेगी। सुरुचिपूर्ण गद्य का अनूठा नमूना है यह पुस्तक। अपनी पठनीयता से यह संस्मरण और यात्रा की अनेक छवियाँ आपकी आँखों के समक्ष साकार कर देती है। इस पुस्तक को पढ़ना स्वयं भूटान की वादियों और रहस्य भरी दुनिया की सैर करना है।

About Author

प्रो. रघुबीर चन्द कुमाऊँ विश्वविद्यालय के डी.एस.बी. परिसर, नैनीताल में पिछले चार दशकों से भूगोल के प्राध्यापक हैं। अभी वे कला संकाय के डीन भी हैं। उनकी अभिरुचि के केन्द्र में आम जनजीवन, दूरस्थ एवं सीमान्त समाजों का अध्ययन रहा है। लद्दाख के पाकिस्तान सीमा पर सिन्धु से लगे दा, हनू ग्रामों से लेकर कराकोरम के नज़दीक बसे गाँवों; हिमाचल से लद्दाख जाते हुए सेरी चू के दूरस्थ गाँवों से लेकर उत्तराखण्ड की सीमान्त घाटियों तक और पूर्वी हिमालय तथा भटान में तिब्बती सीमान्त की यात्राएँ और अध्ययन उन्होंने किये हैं। भूटान में उन्हें दो बार रहने का मौक़ा मिला—पहली बार 1998 से 2001 तक और दूसरी बार 2008 से 2010 तक। उन्होंने भूटान में राजतन्त्र से लोकतन्त्र की तरफ़ जाता हुआ ऐतिहासिक प्रवाह देखा।

हाल के वर्षों में अमेरिका के रॉकी पर्वतमाला के मूल बाशिन्दों-अक्सकापी पिकूनी समाज के 2014-15 में अर्जित उनके अनुभव महत्त्वपूर्ण हैं। पूर्वी भूटान के ब्रोक्पा समुदाय पर उनकी पुस्तक 'हिडन हाइलैण्डर्स' प्रकाशित हुई है। तीन महत्त्वपूर्ण पुस्तकों का सम्पादन उन्होंने किया है। वे भगोलविदों के अन्तरराष्ट्रीय संगठन (आई.जी.य.) के सक्रिय सदस्य हैं। वे हिमालय सम्बन्धी प्रकाशन 'पहाड़' के सम्पादक मण्डल के सदस्य हैं।

2021 में इनका निधन हुआ।

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