फ़ेह्रिस्त
1 ये मत पूछो कि कैसा आदमी हूँ
2 ये न पूछो क्या मुझे मिल जाएगा
3 इस में क्या शक है कि आवारा हूँ मैं
4 कड़ा है दिन बड़ी है रात जब से तुम नहीं आए
5 आदमी को ख़ाक ने पैदा किया
6 टूटा तिलिस्म-ए-वक़्त तो क्या देखता हूँ मैं
7 कभी बदन कभी चेहरा नज़र नहीं आता
8 याद करो जब रात हुई थी
9 कब से है इन्तिज़ार आ जाओ
10 धोका करें फ़रेब करें या दग़ा करें
11 मैं अपने आप से पीछा छुड़ा के
12 आँख से दूर क्या गया है कोई
13 मिली नहीं है शराब-ए-तहूर कुछ दिन से
14 देख तो घर से निकल कर कि गली में क्या है
15 ख़त्म हर अच्छा बुरा हो जाएगा
16 कई दिन से सन्नाहटा मुझ में है
17 क्या बयाबान क्या नगर जाओ
18 हमेशा ख़ुश-बयानी में रहा है
19 न हों आँखें तो पैकर कुछ नहीं है
20 किनारे आज कश्ती लग रही है
21 गए थे हम बड़े तय्यार हो कर
22 मिरी हयात है बस रात के अँधेरे तक
23 सवाल ही नहीं दुनिया से मेरे जाने का
24 ख़ुदा का शुक्र सहारे बग़ैर बीत गई
25 फ़रिश्तों से भी अच्छा मैं बुरा होने से पहले था
26 इत्तिफ़ाक़ अपनी जगह ख़ुश-क़िस्मती अपनी जगह
27 तुम गुज़रे थे किस जल्दी से
28 मिट्टी है या पानी है
29 हम उस के सही वो हमारा नहीं
30 कट रही है बुरी-भली मेरी
31 मिरा यार मुझ से जुदा हो गया
32 हासिल-ए-ज़िन्दगी नहीं मा’लूम
33 बहुत याद इक बेवफ़ा है मुझे
34 कट रही है ज़िन्दगी सदमात में
35 वो होता नहीं है मिरे सामने
36 उ’बूर कर न सके हम हदें ही ऐसी थीं
37 ये अच्छा वो बुरा होता है
38 ज़रा सी सुबूही पिला दीजिए
39 कभी इस की कभी उस की गली में
40 तेरी सोहबत में बैठा हूँ
41 कुछ भी मिरी आँखों को सुझाई नहीं देता
42 सामने आ कर वो क्या रहने लगा
43 बयाबान हूँ या समुन्दर हूँ मैं
44 भटकने दो, रवाना क्यों किया था
45 मुझे वो शख़्स कहीं छोड़ कर नहीं जाता
46 वो मुझे कज-अदा भी लगता है
47 लोग क्या क्या कहा नहीं करते
48 न पूछ मुझ से मिरे दिलरुबा के बारे में
49 हम उसे काश रू-ब-रू करते
50 कब वो मिलते हैं गोशा-गीरों से
51 ख़्वाह ‘शुऊ’र’ सुब्ह-ओ-शाम ग़र्क़ गिलास में रहो
52 जो भीड़ में भी अकेला दिखाई देता है
53 अ’क़्ल कमबख़्त सोचती क्यों है
54 अपनाओ कोई राहगुज़र सोच समझ कर
55 असर बड़े से बड़ा वाक़िआ’ नहीं करता
56 शाम तो होगी सहर तो होगी
57 होता है वो जिधर हम उधर देखते नहीं
58 ग़म-ए-दिल की दवा मुझ से न होगी
59 हम ने जिस रोज़ पी नहीं होती
60 वो कभी आग से लगते हैं कभी पानी से
61 हवस बला की मोहब्बत हमें बला की है
62 होने के बावजूद कहाँ बात होती है
63 हम अपने आप से बेगाने थोड़ी होते हैं
64 भला कब तक ये मजबूरी रहेगी
65 सफ़र तमाम करे दिन तो रात होती है
66 बला हो गए थे वो आने के बा’द
67 याद आ गया वो शख़्स तो याद आए जाएगा
68 तन्हाई पसन्दीदा है महफ़िल से ज़ियादा
69 जो हम-कलाम हो हम से उसी के होते हैं
70 उन से तन्हाई में बात होती रही
71 आज ख़ाली गिलास है मेरा
72 ख़्वाह दिल से मुझे न चाहे वो
73 बुरा बुरे के अ’लावा भला भी होता है
74 ख़्वाब भी वस्ल, वाक़िआ’ भी है
75 वो मिरी तर्ह सीना-चाक नहीं
76 क्या बेमुरव्वती का शिक्वा-गिला किसी से
77 सँभल सँभल के उठाते हुए क़दम दोनों
78 बला से गरेबान है या नहीं
79 ये जानते हुए भी गुज़ारी है ज़िन्दगी
80 हरम को दैर ख़ुदा को सनम समझते रहे
81 उन से होती है मुलाक़ात जब आते जाते
82 नवाज़ते है हमेशा हमें जफ़ाओं से
83 राब्ता सुब्ह-ओ-शाम है हम से
84 चमन में आप की तरह गुलाब एक भी नहीं
85 मैं बज़्म-ए-तसव्वुर में उसे लाए हुए था
86 उस शोख़ ने माँग ली मुआ’फ़ी
87 हो आए एक बार तो जाता है बार बार
88 हम अपनी ज़रूरत का इज़्हार नहीं करते
89 काफ़ी नहीं ख़ुतूत किसी बात के लिए
90 गो मुझे एहसास-ए-तन्हाई रहा शिद्दत के साथ
91 होगी तिरी दीद वाक़ई’ क्या
92 दीवार जाने दीजिए, दर जाने दीजिए
93 राएगाँ जा रही है हर कोशिश
94 वो भी क्या दौर ज़िन्दगी का था
95 जोश में हद से न हम गुज़रा करें
96 हमारा ज़िम्मा अगर वो खिंचा न आए तो
97 वो जफ़ाकार ओ सितमगार बहुत अच्छे हैं
98 रहे हम उन आँखों के मस्ताने बरसों
99 अदीबों शाइ’रों से यारियों में
100 उस बज़्म में क्या कोई सुने राए हमारी
1
ये मत पूछो कि कैसा आदमी हूँ
ये मत पूछो कि कैसा आदमी हूँ
करोगे याद, ऐसा आदमी हूँ
मिरा नाम-ओ-नसब क्या पूछते हो
ज़लील-ओ-ख़्वार-ओ-रुस्वा1 आदमी हूँ
1 नीच और बदनाम
तआ’रुफ़1 और क्या इस के सिवा हो
कि मैं भी आप जैसा आदमी हूँ
1 परिचय
ज़माने के झमेलों से मुझे क्या
मिरी जाँ मैं तुम्हारा आदमी हूँ
चले आया करो मेरी तरफ़ भी
मोहब्बत करने वाला आदमी हूँ
‘शुऊ’र’ आ जाओ मेरे साथ, लेकिन
मैं इक भटका हुआ सा आदमी हूँ
2
ये न पूछो क्या मुझे मिल जाएगा
ये न पूछो क्या मुझे मिल जाएगा
मैं जो चाहूँगा मुझे मिल जाएगा
मैं भटकना छोड़ दूँगा जब कोई
आदमी अपना मुझे मिल जाएगा
काश वो मिल जाए ता’तीलात1 में
मश्ग़ला2 अच्छा मुझे मिल जाएगा
1 छुट्टिायाँ 2 काम
तुम न मिल पाए तो क्या रक्खूँ उमीद
कोई तुम जैसा मुझे मिल जाएगा
फ़र्ज़ कर लो मिल गई कुल काएनात1
अज्र2 क्या पूरा मुझे मिल जाएगा
1 पूरा ब्रह्माँड 2 बदला, पुण्य
हाँ इसी उ’म्र-ए-दो-रोज़ा1 में ‘शुऊ’र’
एक दिन मौक़ा’ मुझे मिल जाएगा
1 दो दिन की ज़िन्दगी
3
इस में क्या शक है कि आवारा हूँ मैं
इस में क्या शक है कि आवारा हूँ मैं
कूचे1 कूचे में फिरा करता हूँ मैं
1 गली
मुझ से सरज़द होते रहते हैं गुनाह
आदमी हूँ क्यों कहूँ अच्छा हूँ मैं
साफ़-ओ-शफ़्फ़ाफ़1 आस्माँ को देख कर
गन्दी गन्दी गालियाँ बकता हूँ मैं
1 स्वच्छ और पारदर्शी
क़ह्वा-ख़ानों में बसर करता हूँ दिन
बादा-ख़ानों1 में सहर2 करता हूँ मैं
1 शराब ख़ानों 2 सुब्ह
दिन गुज़रता है मिरा अहबाब1 में
रात को फ़ुटपाथ पर सोता हूँ मैं
1 दोस्त
बीट कर जाती है चिड़िया टाट पर
अ’ज़्मत-ए-आदम1 का आईना हूँ मैं
1 इन्सान की महानता
काँच सी गुड़ियों के नर्म आ’साब1 पर
सूरत-ए-संग-ए-हवस2 पड़ता हूँ मैं
1 स्नायु 2 वासना के पत्थर की तरह
नाज़ुकों के नाज़ उठाने के बजाए
नाज़ुकों से नाज़ उठवाता हूँ मैं