Kayantar
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Author | Jaishree Roy |
Item Weight | 0.0 kg |
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जयश्री रॉय के चौथे कहानी-संग्रह 'कायान्तर' की। कहानियों में स्थान, समय और संवेदना के समुच्चय का सघनतम स्वरूप मौजूद है। नितान्त अलग परिवेश और पर्यावरण की कहानियों को रचनात्मक संवेदना की समान सीव्रता के साथ कथात्मक विस्तार देना जयश्री की विशेषता है। अबूझ और चौंकाऊ शिल्प-विन्यास के फैशन से अलग कहानीपन के ठाठ को ज़िन्दा रखते हुए ये कहानियाँ लिंग, जाति और वर्ग के जटिलतम अन्तर्द्वन्द्वों से लेकर बाज़ार और अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के गूढ़तम यथार्थ तक को बहुत ही सहजता से उद्घाटित करती हैं। 'कॉस्मोपोलिटन' के अजनबीपन तथा गाँव और लोक की आत्मीय तरलता को समान तन्मयता से पहचानतीं ये कहानियाँ विमर्श के कई चालू मुहावरों का अतिक्रमण करते हुए कला और यथार्थ के बीच खड़ी दीवारों को गिराने का सार्थक जतन भी करती हैं। इस संग्रह की कहानियों का दायरा बहुत बड़ा है। आभासी दुनिया के यथार्थ के समानान्तर युवा होते किशोर का मनोविज्ञान हो या मातृ ग्रन्थि से पीड़ित एक पुरुष की मनोदशा, जाफरान के खेतों में गूँजती कश्मीर की लोक कथाएँ हों या नाजियों के अत्याचार का शिकार यहूदियों का आर्तनाद, विवाह संस्था बनाम 'लिव इन' का अन्तर्द्वन्द्व हो या सुहाग चिहों को धारण करने या छोड़ने की विवशता और शृंगार की नैसर्गिक अभिलाषाओं के दो पाटों के बीच अपनी अस्मिता तलाशती स्त्री का बीहड़ संघर्ष, सब के सब पूरे रचनात्मक वैभव के साथ इन कहानियों में मौजूद हैं। वैचारिकता और मार्मिकता के सम्मिलित रसायन से तैयार इन कहानियों को पढ़ना समाज और रचना के परस्पर संवाद का साक्षी होना है। -राकेश बिहारी
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