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Agar Main Sher Na Kahta
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About Book

'अगर मैं शे'र न कहता' आ'लमी शोहरत-याफ़्ता अ'ब्बास ताबिश की चुनिन्दा गज़लों का देवनागरी में रूपांतरण है| उनकी शाइ'री में एक साधा हुआ रूमान है, जिसकी हदें इंसानी रूह और इसके आस-पास फैली हुई दुनिया के तमामतर मसलों पर निगाह डालती हैं।  उनके यहाँ एहसास के कई रंग हैं, यानी ये नहीं कहा जा सकता कि वे सिर्फ इ'श्क़ के शाइ'र हैं, या सिर्फ, फ़लसफ़े की गुत्थियों को ही अपने शे'र में खोलते हैं, या सिर्फ दुनियावी समझ और ज़िन्दगी को ही अपना विषय बनाते हैं।

About Author

अ’ब्बास ताबिश पाकिस्तान के आ’लमी शोहरत-याफ़्ता शाइ'र हैं| उन्होंने गवर्नमेंट कॉलेज, लाहौर से शिक्षा प्राप्त की और 1986 में उर्दू भाषा-साहित्य में एम. ए. करने के बा’द वहीं लेक्चरर हो गए| पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने ‘रावी’ नाम कि एक साहित्यिक पत्रिका का सम्पादन भी किया| इससे पहले वो कई उर्दू अख़बारों के लिए भी काम कर चुके थे|  अ’ब्बास ताबिश की शाइ’री की कुल पाँच किताबें “तम्हीद”, “आस्मान”, “मुझे दुआ’ओं में याद रखना”, “परों में शाम ढलती है” और “रक़्स दरवेश” प्रकाशित हो चुकी हैं| इन दिनों लाहौर में रहते हैं| उर्दू अदब की ख़िदमत के लिए उन्हें कई सम्मान प्राप्त हो चुके हैं |


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फ़ेह्‍‌रिस्त

 

1 दश्त में प्यास बुझाते हुए मर जाते हैं
2 पानी आँख में भर कर लाया जा सकता है
3 हँसने नहीं देता कभी रोने नहीं देता
4 ये अ’जब साअ’त-ए-रुख़्सत है कि डर लगता है
5 मेरी तन्हाई बढ़ाते हैं चले जाते हैं
6 पाँव पड़ता हुआ रस्ता नहीं देखा जाता
7 आँख पे पट्टी बाँध के मुझको तन्हा छोड़ दिया है
8 दी है वहशत तो ये वहशत ही मुसलसल हो जाए
9 तेरे लिए सब छोड़ के तेरा न रहा मैं
10 कोई मिलता नहीं ये बोझ उठाने के लिए
11 बहुत बे-कार मौसम है मगर कुछ काम करना है
12 बैठता उठता था मैं यारों के बीच
13 कोई टकरा के सुबुक-सर भी तो हो सकता है
14 न तुझसे है न गिला आस्मान से होगा
15 याद कर कर के उसे वक़्त गुज़ारा जाए
16 खा के सूखी रोटियाँ पानी के साथ
17 वो आने वाला नहीं फिर भी आना चाहता है
18 वो चाँद हो कि चाँद सा चेहरा कोई तो हो
19 टूट जाने में खिलौनों की तरह होता है
20 ऐसे तो कोई तर्क सुकूनत नहीं करता
21 चाँद को तालाब मुझको ख़्वाब वापस कर दिया
22 मकाँ भर हमको वीरानी बहुत है
23 तेरी आँखों से अपनी तरफ़ देखना भी अकारत गया
24 रातें गुज़ारने को तिरी रहगुज़र के साथ
25 फ़क़त माल-ओ-ज़र-ए-दीवार-ओ-दर अच्छा नहीं लगता
26 मह-रुख़ जो घरों से कभी बाहर निकल आए
27 साँस के हम-राह शो’ले की लपक आने को है
28 एक मुश्किल सी ब-हर-तौर बनी होती है
29 दहन खोलेंगी अपनी सीपियाँ आहिस्ता आहिस्ता
30 कस कर बाँधी गई रगों में दिल की गिरह तो ढीली है
31 तेरी रूह में सन्नाटा है और मिरी आवाज़ में चुप
32 ये किसके ख़ौफ़ का गलियों में ज़ह्र फैल गया
33 झिलमिल से क्या रब्त निकालें कश्ती की तक़दीरों का
34 निगाह-ए-अव्वलीं का है तक़ाज़ा देखते रहना
35 सदा-ए-ज़ात के ऊँचे हिसार में गुम है
36 बचपन का दौर अ’ह्द-ए-जवानी में खो गया
37 एक क़दम तेग़ पे और एक शरर पर रक्खा
38 मकाँ-भर हमको वीरानी बहुत है
39 तिलिस्म-ए-ख़्वाब से मेरा बदन पत्थर नहीं होता
40 साँस के शोर को झंकार न समझा जाए
41 शायद किसी बला का था साया दरख़्त पर
42 अ’जीब तौर की है अब के सरगिरानी मिरी
43 हवा-ए-तेज़ तिरा एक काम आख़िरी है
44 इतना आसाँ नहीं मसनद पे बिठाया गया मैं
45 डूब कर भी न पड़ा फ़र्क़ गिराँ-जानी में
46 पस-ए-दुआ’ न रहें क्यों उदासियाँ मेरी
47 अभी से लाए हो क्यों दिल की राह पर उसको
48 इसीलिए तो ये शामें उजड़ने लगती हैं
49 बिछड़ के हमसे जो खोए गए हैं राह के बीच
50 दिल दुखों के हिसार में आया

 

1

दश्त1 में प्यास बुझाते हुए मर जाते हैं

हम परिन्दे कहीं जाते हुए मर जाते हैं

1 जंगल रेगिस्तान

 

हम हैं सूखे हुए तालाब पे बैठे हुए हंस

जो तअल्लुक़ को निभाते हुए मर जाते हैं

 

घर पहुँचता है कोई और हमारे जैसा

हम तिरे शह्र से जाते हुए मर जाते हैं

 

किस तरह लोग चले जाते हैं उठ कर चुप-चाप

हम तो ये ध्यान में लाते हुए मर जाते हैं

 

उनके भी क़त्ल का इल्ज़ाम1 हमारे सर है

जो हमें ज़ह्र पिलाते हुए मर जाते हैं

1 दोष

 

ये मोहब्बत की कहानी नहीं मरती लेकिन

लोग किरदार निभाते हुए मर जाते हैं

 

हम हैं वो टूटी हुई कश्तियों वालेताबिश

जो किनारों को मिलाते हुए मर जाते हैं

 


 

2

पानी आँख में भर कर लाया जा सकता है

अब भी जलता शह्र बचाया जा सकता है

 

एक मोहब्बत और वो भी नाकाम मोहब्बत

लेकिन इससे काम चलाया जा सकता है

 

दिल पर पानी पीने आती हैं उम्मीदें

इस चश्मे में ज़ह्र मिलाया जा सकता है

 

मुझ गुमनाम से पूछते हैं फ़र्हाद--मज्नूँ1

श्क़ में कितना नाम कमाया जा सकता है

1 प्रेम-कथा के नायक

 

ये महताब1 ये रात की पेशानी2 का घाव

ऐसा ज़ख़्म तो दिल पर खाया जा सकता है

1 चाँद 2 माथा

 

फटा-पुराना ख़्वाब है मेरा फिर भीताबिश

इस में अपना आप छुपाया जा सकता है

 


 

3

हँसने नहीं देता कभी रोने नहीं देता

ये दिल तो कोई काम भी होने नहीं देता

 

तुम माँग रहे हो मिरे दिल से मिरी ख़्वाहिश

बच्चा तो कभी अपने खिलोने नहीं देता

 

मैं आप उठाता हूँ शब--रोज़1 की ज़िल्लत2

ये बोझ किसी और को ढोने नहीं देता

1 रात और दिन 2 रुस्वाई

 

वो कौन है उससे तो मैं वाक़िफ़1 भी नहीं हूँ

जो मुझको किसी और का होने नहीं देता

1 जानना, अवगत, परिचित

 


 

4

ये अजब साअ--रुख़्सत1 है कि डर लगता है

शह्र का शह्र मुझे रख़्त--सफ़र2 लगता है

1 जुदाई का वक़्त 2 सफ़र का सामान, मुसाफ़िर का सामान

 

रात को घर से निकलते हुए डर लगता है

चाँद दीवार पे रक्खा हुआ सर लगता है

 

हमको दिल ने नहीं हालात ने नज़्दीक किया

धूप में दूर से हर शख़्स शजर1 लगता है

1 पेड़

 

जिस पे चलते हुए सोचा था कि लौट आऊँगा

अब वो रस्ता भी मुझे शह्-बदर लगता है

 

मुझसे तो दिल भी मोहब्बत में नहीं ख़र्च हुआ

तुम तो कहते थे कि इस काम में घर लगता है

 

वक़्त लफ़्ज़ों1 से बनाई हुई चादर जैसा

ओढ़ लेता हूँ तो सब ख़्वाब हुनर लगता है

1 शब्दों

 

इस ज़माने में तो इतना भी ग़नीमत1 है मियाँ

कोई बाहर से भी दरवेश अगर लगता है

1 ठीक, अच्छा, काम चलाऊ

 

अपने शजरे कि वो तस्दीक़1 कराए जा कर

जिसको ज़न्जीर पहनते हुए डर लगता है

1 सत्यापित

 

एक मुद्दत से मिरी माँ नहीं सोईताबिश

मैंने इक बार कहा था मुझे डर लगता है

 


 

5

मेरी तन्हाई बढ़ाते हैं चले जाते हैं

हंस तालाब पे आते हैं चले जाते हैं

 

इसलिए अब मैं किसी को नहीं जाने देता

जो मुझे छोड़ के जाते हैं चले जाते हैं

 

मेरी आँखों से बहा करती है उनकी ख़ुश्बू

रफ़्तगाँ1 ख़्वाब में आते हैं चले जाते हैं

1 गुज़रे हुए लोग

 

शादी--मर्ग का माहौल बना रहता है

आप आते हैं रुलाते हैं चले जाते हैं

 

कब तुम्हें इश्क़ पे मज्बूर किया है हमने

हम तो बस याद दिलाते हैं चले जाते हैं

 

आपको कौन तमाशाई समझता है यहाँ

आप तो आग लगाते हैं चले जाते हैं

 

हाथ पत्थर को बढ़ाऊँ तो सगान1--दुनिया

हैरती2 बन के दिखाते हैं चले जाते हैं

1 कुत्ते 2 आश्चर्यचकित

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Abhishek P

Excellent collection of Abbas Tabish sahab'sher.

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