S
Sameer Rajurkar 100 Shayar 100 Ghazlein
S
Swapnesh Tailor 100 Shayar 100 Ghazlein
EXTRA 10% OFF on 1st order. Code: FIRSTORDER, | FREE SHIPPING on All Orders (Over Rs 349)
Track Your OrderRs. 249 Rs. 199
About Book अब तक, उर्दू शाइ'री की दुनिया पर चन्द मश्हूर शाइ'रों का ही क़ब्ज़ा रहा है। उन्हीं की ग़ज़लें बार बार छापी और गाई जाती रही हैं। प्रस्तुत है मश्हूर शाइ'रों के साथ साथ, ऐसे कम−मश्हूर या गुमनाम शाइ'रों की ऐसी आ'ला−दर्जे की ग़ज़लें जो अपनी भाव−भावना दृष्टि और... Read More
Out of stock
Coming Soon
About Book
अब तक, उर्दू शाइ'री की दुनिया पर चन्द मश्हूर शाइ'रों का ही क़ब्ज़ा रहा है। उन्हीं की ग़ज़लें बार बार छापी और गाई जाती रही हैं। प्रस्तुत है मश्हूर शाइ'रों के साथ साथ, ऐसे कम−मश्हूर या गुमनाम शाइ'रों की ऐसी आ'ला−दर्जे की ग़ज़लें जो अपनी भाव−भावना दृष्टि और अपने लफ़्जों की दिलकशी से आपके दिल−दिमाग़ पर अपनी छाप छोड़े बग़ैर नहीं रहेंगी।
About Author
फ़रहत एहसास (फ़रहतुल्लाह ख़ाँ) बहराइच (उत्तर प्रदेश) में 25 दिसम्बर 1950 को पैदा हुए। अ’लीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्ति के बा’द 1979 में दिल्ली से प्रकाशित उर्दू साप्ताहिक ‘हुजूम’ का सह-संपादन। 1987 में उर्दू दैनिक ‘क़ौमी आवाज़’ दिल्ली से जुड़े और कई वर्षों तक उस के इतवार एडीशन का संपादन किया जिस से उर्दू में रचनात्मक और वैचारिक पत्रकारिता के नए मानदंड स्थापित हुए। 1998 में जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्ली से जुड़े और वहाँ से प्रकाशित दो शोध-पत्रिकाओं (उर्दू, अंग्रेज़ी) के सह-संपादक के तौर पर कार्यरत रहे। इसी दौरान उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो और बी.बी.सी. उर्दू सर्विस के लिए कार्य किया और समसामयिक विषयों पर वार्ताएँ और टिप्पणियाँ प्रसारित कीं। फ़रहत एहसास अपने वैचारिक फैलाव और अनुभवों की विशिष्टता के लिए जाने जाते हैं। उर्दू के अ’लावा, हिंदी, ब्रज, अवधी और अन्य भारतीय भाषाओं और अंग्रेजी व अन्य पश्चिमी भाषाओं के साहित्य के साथ गहरी दिलचस्पी। भारतीय और पश्चिमी दर्शन से भी अंतरंग वैचारिक संबंध। सम्प्रति ‘रेख़्ता फ़ाउंडेशन’ में मुख्य संपादक के पद पर कार्यरत।
Title | Default title |
---|---|
Publisher | |
Language | |
ISBN | |
Pages | |
Publishing Year |
About Book
अब तक, उर्दू शाइ'री की दुनिया पर चन्द मश्हूर शाइ'रों का ही क़ब्ज़ा रहा है। उन्हीं की ग़ज़लें बार बार छापी और गाई जाती रही हैं। प्रस्तुत है मश्हूर शाइ'रों के साथ साथ, ऐसे कम−मश्हूर या गुमनाम शाइ'रों की ऐसी आ'ला−दर्जे की ग़ज़लें जो अपनी भाव−भावना दृष्टि और अपने लफ़्जों की दिलकशी से आपके दिल−दिमाग़ पर अपनी छाप छोड़े बग़ैर नहीं रहेंगी।
About Author
फ़रहत एहसास (फ़रहतुल्लाह ख़ाँ) बहराइच (उत्तर प्रदेश) में 25 दिसम्बर 1950 को पैदा हुए। अ’लीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्ति के बा’द 1979 में दिल्ली से प्रकाशित उर्दू साप्ताहिक ‘हुजूम’ का सह-संपादन। 1987 में उर्दू दैनिक ‘क़ौमी आवाज़’ दिल्ली से जुड़े और कई वर्षों तक उस के इतवार एडीशन का संपादन किया जिस से उर्दू में रचनात्मक और वैचारिक पत्रकारिता के नए मानदंड स्थापित हुए। 1998 में जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्ली से जुड़े और वहाँ से प्रकाशित दो शोध-पत्रिकाओं (उर्दू, अंग्रेज़ी) के सह-संपादक के तौर पर कार्यरत रहे। इसी दौरान उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो और बी.बी.सी. उर्दू सर्विस के लिए कार्य किया और समसामयिक विषयों पर वार्ताएँ और टिप्पणियाँ प्रसारित कीं। फ़रहत एहसास अपने वैचारिक फैलाव और अनुभवों की विशिष्टता के लिए जाने जाते हैं। उर्दू के अ’लावा, हिंदी, ब्रज, अवधी और अन्य भारतीय भाषाओं और अंग्रेजी व अन्य पश्चिमी भाषाओं के साहित्य के साथ गहरी दिलचस्पी। भारतीय और पश्चिमी दर्शन से भी अंतरंग वैचारिक संबंध। सम्प्रति ‘रेख़्ता फ़ाउंडेशन’ में मुख्य संपादक के पद पर कार्यरत।